अनुप्रास अलंकार – उदाहरण , परिभाषा , भेद , छेकानुप्रास अलंकार

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अनुप्रास अलंकार की परिभाषा

‘जब एक ही अक्षर या व्यंजन किसी एक वाक्य में एक से अधिक बार प्रयोग हो तो उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं। इसका यह अर्थ नहीं कि उसमें एक ही स्वर का प्रयोग हो। जैसे-

चारु चन्द्र की चंचल किरणें, खेल रही थीं जल-थल में,

स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई थी, अवनि और अम्बर तल में।”

प्रथम पंक्ति में चारु-चन्द्र तथा द्वितीय पंक्ति में अवनि अम्बर के प्रयोग से अनुप्रास अलंकार है।

अनुप्रास अलंकार के उदाहरण

अनुप्रास अलंकार के भेद

अनुप्रास अलंकार के मुख्य पांच भेद माने गए हैं।

  1. छेकानुप्रास अलंकार
  2. वृत्यानुप्रास अलंकार
  3. लाटानुप्रास अलंकार
  4. अन्त्यानुप्रास अलंकार
  5. श्रुत्यानुप्रास अलंकार

छेकानुप्रास अलंकार

एक ही वर्ण की दो बार आवृत्ति होने पर छेकानुप्रास अलंकार होता है-“स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई थी, अवनि और अम्बर तल में। यहाँ ‘अवर्ण दो बार प्रयोग हुआ है।

वृत्यानुप्रास अलंकार

जब यह आवृत्ति दो से अधिक बार होती है तब वृत्यानुप्रास अलंकार होता है। जैसे-“चारु चन्द्र की चंचल किरणें, खेल रहीं थीं जल-थल में।” यहाँ ‘च’ वर्ण दो से अधिक बार प्रयोग में आया है।

छेकानुप्रास तथा वृत्यानुप्रास के वर्ण सुनने में सुखद होते हुए भी प्रायः निरर्थक होते हैं हैं जबकि ‘लाटानुप्रास‘ में ऐसे शब्द दोबारा प्रयुक्त होते हैं जिनका अर्थ एक प्रतीत होते हुए भी अन्वय से भिन्न हो जाता है। जैसे-

पराधीन जो जन, नहीं स्वर्ग नरक ता हेतु।
पराधीन जो जन नहीं, स्वर्ग नरक ता हेतु।’

यहाँ सामान्य रूप कोई अर्थ भिन्नता न होने पर भी अन्वय (अर्द्ध विराम) द्वारा भिन्न हो जाता है। जैसे-प्रथम पंक्ति का अर्थ है-‘जो मनुष्य पराधीन हैं, ता हेतु स्वर्ग भी नर्क (बना) है। दूसरी पंक्ति का अर्थ है-‘जो जन पराधीन नहीं, ता हेतु नरक (भी) स्वर्ग है।’ उसके लिए नर्क का वास भी स्वर्ग के समान है।


अलंकार की परिभाषा

हिन्दी व्याकरण

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