ऊर्जा संरक्षण के नियम | urja sanrakshan ka niyam udaharan

ऊर्जा संरक्षण के नियम

ऊर्जा संरक्षण के नियम के अनुसार, ऊर्जा न तो उत्पन्न की जा सकती है और न ही नष्ट की जा सकती है, यह केवल एक रूप से दूसरे रूप में रूपांतरित (Conver) की जा सकती है अर्थात्, एक बन्द व्यवस्था में सम्पूर्ण ऊर्जा का परिमाण नियत (Constant) रहता है।

माना m द्रव्यमान की एक वस्तु h ऊँचाई से स्वतंत्रतापूर्वक गिराई जाती है। प्रारम्भ में स्थितिज ऊर्जा (U) का मान mgh तथा गतिज ऊर्जा का मान शून्य होगा। इसलिए ॥ ऊँचाई पर वस्तु की गतिज ऊर्जा वस्तु के नीचे गिरने पर स्थितिज ऊर्जा में कमी आएगी तथा गतिज ऊर्जा में वृद्धि होगी।

न्यूनतम बिन्दु पृथ्वी सतह पर पहुँची वस्तु की गतिज ऊर्जा अधिकतम हो जाएगी तथा स्थितिज ऊर्जा शून्य हो जाएगी। इस प्रकार,

स्थितिज ऊर्जा + गतिज ऊर्जा =  नियत (Constant)

गतिज ऊर्जा और स्थितिज ऊर्जा के योग को यांत्रिक ऊर्जा (Mechanical Energy) कहते हैं।

ऊर्जा रूपान्तरण या स्थानांतरण

जब कोई कारक किसी वस्तु पर कार्य करता है तो उसमें संचित ऊर्जा अपने मूल रूप से किसी अन्य प्रकार की ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है तथा जिस वस्तु पर कार्य किया गया है, उसकी ऊर्जा में वृद्धि हो जाती है। इसका अर्थ है कि, कार्य करने में ऊर्जा का स्थानांतरण होता है।

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