विशेषण किसे कहते हैं | विशेषण के भेद, पूरी जानकारी हिन्दी में | Visheshan

Visheshan kise kahate hain – आज हम जानेंगे की विशेषण किसे कहते हैं इसके उदाहरण तथा विशेषण कितने प्रकार के होते हैं. क्रिया विशेषण ,संख्यावाचक विशेषण, सार्वनामिक विशेषण और भी विशेषण के बारे में बहुत कुछ हमने बताया है.

विशेषण किसे कहते हैं

विशेषण – संज्ञा और सर्वनाम शब्दों की विशेषता बताने वाले शब्दों को विशेषण कहते हैं। विशेषण एक ऐसा शब्द है, जो संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताता है। जिस शब्द की विशेषता बताई जाए, वह विशेष्य कहलाता है। जैसे-(i) काला कुत्ता, (ii) मोटा आदमी, (iii) लाल गुलाब, (iv) नीला आकाश, (v) लंगड़ा घोड़ा।

इसका अर्थ यह है कि विशेषण रहित संज्ञा से जिस वस्तु का बोध होता है, विशेषण लगने पर उसका अर्थ सीमित हो जाता है। जैसे – ‘शेर‘ संज्ञा से ‘शेर‘ जाति के प्राणियों का बोध होता है, पर ‘बब्बर शेर‘ कहने से केवल बब्बर शेरों का बोध होता है, सभी तरह के शेरों का नहीं।

विशेष्य किसे कहते हैं

विशेष्य – जिस संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता प्रकट की जाती है, उसे विशेष्य कहते हैं। जैसे –

(i) मुझे मीठा भोजन पसंद है।
(ii) काली गाय अधिक दूध देती है।
(iii) एक किलोग्राम खट्टा दही लाओ।
(iv) चावलों में काली मिर्च भी डाल दो।

यहाँ पर ‘भोजन’, ‘दूध’ तथा ‘दही’ और ‘काली मिर्च’ विशेष्य है, कभी-कभी विशेषण विशेष्य के बाद भी आते हैं। जैसे –

(i) वे छात्र बुद्धिमान हैं।
(ii) मानव सर्वश्रेष्ठ प्राणी होता है।

उद्देश्य विशेषण और विधेय विशेषण

विशेष्य से पूर्व आने वाले विशेषण उद्देश्य (विशेष्य) विशेषण कहलाते हैं जबकि बाद वाले विशेषण विधेय विशेषण होते हैं।
जैसे – चतुर बालक अपना कार्य करते हैं।
बालक चतुर हैं.

प्रविशेषण किसे कहते हैं

प्रविशेषण – “जो शब्द विशेषण शब्दों की भी विशेषता बताते हैं, उन्हें प्रविशेषण कहते हैं।”

(i) राधा बहुत सुन्दर है।
(ii) श्रेय अत्यंत परिश्रमी बालक है।
(iii) अधिक चतुर बालक पकड़े जाते हैं।

“क्रिया विशेषणों की विशेषता बताने वाले शब्द भी प्रविशेषण कहलाते हैं।” जैसे- गरिमा बहुत धीरे-धीरे चलती है।

विशेषण के भेद

गुण, संख्या और परिमाण के आधार पर विशेषण के मुख्यतः तीन भेद माने गये हैं

  1. सार्वनामिक विशेषण
  2. गुणवाचक विशेषण
  3. संख्यावाचक विशेषण

visheshan ke bhed in hindi

सार्वनामिक विशेषण

सार्वनामिक विशेषण – “पुरुषवाचक और निजवाचक सर्वनाम (मैं, तू, वह) के अलावा अन्य सर्वनाम जब किसी संज्ञा के पहले आते हैं, तब वे सार्वजनिक विशेषण’ कहलाते हैं।

जैसे – वह चपरासी नहीं आया, यह हाथी अच्छा है। यहाँ ‘चपरासी‘ और ‘हाथी‘ संज्ञाओं के पहले विशेषण के रूप में ‘वह‘ और ‘यह‘ सर्वनाम आये हैं। अत: ये सार्वनामिक विशेषण हैं।

उत्पत्ति के अनुसार सार्वनामिक विशेषण के दो भेद हैं।

  1. मौलिक सार्वनामिक विशेषण
  2. यौगिक सार्वनामिक विशेषण

मौलिक सार्वनामिक विशेषण

जो बिना किसी परिवर्तन के संज्ञा के पहले प्रयोग में आता है, उसे मौलिक सार्वनामिक विशेषण कहते हैं। जैसे – यह पार्क, वह फल? कोई बालक इत्यादि।

यौगिक सार्वनामिक विशेषण

जो मूल सर्वनामों में प्रत्यय लगने से बनते हैं उन्हें यौगिक सार्वनामिक विशेषण कहते हैं। जैसे – ऐसा आदमी, कैसा घर, जैसा देश इत्यादि।

गुणवाचक विशेषण किसे कहते हैं

गुणवाचक विशेषण – “जिस शब्द से संज्ञा के गुण, दशा, स्वभाव आदि का ज्ञान हो, उसे ‘गुणवाचक विशेषण‘ कहते हैं।” यह विश्लेषण संज्ञा के गुण को इंगित करता है लेकिन इस गुण का अर्थ यह नहीं कि यह केवल संज्ञा के अच्छे गुणों को इंगित करता है बल्कि उसके बुरे गुण को भी बताता है।

गुणवाचक विशेषण संज्ञा के काल, आकार, रंग, गंध, स्वाद, रूप, विशेषता, दशा आदि का वर्णन कर देते हैं।
विशेषणों में इनकी संख्या सबसे अधिक है। इनके कुछ मुख्य रूप इस प्रकार हैं-

काल – पुराना, ताजा, भूत, वर्तमान, भविष्य, प्राचीन, अगला, मौसमी, आगामी आदि।

स्थान – उजाड़, भीतरी, बाहरी, ऊपरी, दायाँ, बायाँ, स्थानीय, क्षेत्रीय आदि।

आकार – गोल, चौकोर, पीला, सुन्दर, नुकीला, लम्बा, चौड़ा, सीधा आदि।

रंग – लाल, पीला, नीला, सफेद, काला, चमकीला, धुंधला, फीका।

दशा – पतला, मोटा, भारी, हल्का, गीला, सूखा, गरीब, उद्यमी, पालतू, रोगी।

गुण – उचित, अनुचित, सच्चा, झूठा, दानी, न्यायी, दुष्ट, शान्त।

विशेष – गुणवाचक विशेषण में ‘सा‘ जोड़कर गुणों को कम भी किया जाता है। जैसे – बड़ा-सा, ऊँची-सी, पीला-सा आदि।

संख्यावाचक विशेषण किसे कहते हैं

जिन शब्दों से संज्ञा या सर्वनाम की संख्या प्रकट होती हो, उसे ‘संख्यावाचक विशेषण‘ कहते हैं। इस विशेषण को परिमाणवाचक विशेषण भी कहते हैं। यह विशेषण किसी संज्ञा या सर्वनाम की माप तौल सम्बन्धी विशेषता को प्रकट करता है। जैसे – तीन दिन, कुछ लोग, सब लड़के, चार लीटर दूध, थोड़ा पानी, इत्यादि। यहाँ तीन, कुछ, सब, चार, थोड़ा संख्यावाचक विशेषण हैं।

संख्यावाचक विशेषण के मुख्य तीन भेद हैं –

  1. निश्चित संख्यावाचक (निश्चित)
  2. अनिश्चित संख्यावाचक (अनिश्चित)
  3. परिमाणबोधक

निश्चित संख्यावाचक (निश्चित)

इस प्रकार के विशेषण से वस्तु की निश्चित संख्या का बोध होता है। जैसे – एक लड़का, तीन लाख रुपये, पच्चीस रुपये आदि। इस निश्चित संख्यावाचक विशेषण के निम्नांकित पाँच भेद हैं-जिन विशेषण शब्दों से दूसरी प्रकार के विशेषण से वस्तु की संख्या अनिश्चित रहती है। जैसे-कुछ लोग, थोड़ा पैसा, सब जानवर।

(i) गणना वाचक – गिनती का बोध होता है यथा-एक, दो, पाँच आदि।

(ii) क्रमवाचक – जिन विशेषण शब्दों से क्रम का बोध हो; जैसे-दूसरा, चौथा, छठवाँ।

(iii) आवृत्ति वाचक – किसी वस्त के गुणन का बाध हो; जैसे-दुगुना, इकहरा, चौगुना आदि।

(iv) आवृत्ति वाचक – किसी वस्तु के गुणन का बोध हो; जैसे-दुगुना, इकहरा, चौगुना – आदि।

(v) समुदाय वाचक – किसी सामूहिक संख्या का बोध हो; जैसे-दोनों, पांचों, तीनों।

(vi) प्रत्येक बोधक – जिन शब्दों से प्रत्येक का बोध हो; जैसे-हर सातवें दिन, हर एक, – प्रत्येक आदि।

गणनावाचक संख्यावाचक विशेषण के भी दो भेद हैं –

(i) पूर्णांक बोधक – एक, दो, चार, सौ, हजार आदि।

(ii) अपूर्णांकबोधक विशेषण – पाव, आध, पौन, सवा। पूर्णांक बोधक विशेषण शब्दों तथा अंकों दोनों में लिखे जाते हैं।

संख्यावाचक विशेषण की उत्पति

यह विशेषण प्राकृत द्वारा संस्कृत से आए हैं –

संस्कृत प्राकृत  हिन्दी
एक एकक एक
द्वि दुवे दो
त्रि त्रिण्णि तीन
चतुर चत्तारि चार
पंचम पंच पाँच
षट् छह
सप्तम सत सात
अष्टम अष्ट आठ
नवम् नव नौ
दशन् दस दस

परिमाणबोधक विशेषण किसे कहते हैं

परिमाणबोधक – यह संख्यावाचक विशेषण का मुख्य भेद है। इससे किसी वस्तु की नाप या तोल का बोध होता है। जैसे- एक लीटर भर दूध। तोला भर नमक। एक तोला सोना। कुछ या थोड़ा पानी। सब धन। और घी आदि।

परिमाणबोधक विशेषण के दो भेद होते हैं –

(i) निश्चित परिमाणवाचक विशेषण – दो किलोग्राम घीदस हाथ जगह। चार गज मलमल।

(ii) अनिश्चित परिमाण बोधक – बहुत दूध। सब धन। पूरा आनंद।

महत्त्वपूर्ण तथ्य – विशेषण के लिंग, वचन आदि विशेष्य के लिंग, वचन आदि के अनुसार होते हैं। चाहे वे शब्द विशेष्य से पूर्व प्रयुक्त हों अथवा पश्चात। जैसे-अच्छे लड़के पढ़ते हैं। राधा भली लड़की है।

यदि एक ही विशेषण के अनेक विशेष्य होने पर, विशेषण के लिंग, वचन आदि समीप के विशेष्य के अनुसार होगा। जैसे – नये पुरुष और नारियाँ। नई धोती और कुरता।

विशेषणों की रचना

विशेषणों के रूप निम्नलिखित स्थितियों में बदलते हैं –

(1) रूप रचना की दृष्टि से विशेषण विकारी तथा अविकारी दोनों होते हैं। अविकारी विशेषणों के रूप में परिवर्तन नहीं होते। ये अपने मूल रूप में ही रहते हैं। जैसे-लाल, भद्दा, , पीला, चालबाज, सुन्दर, चंचल, गोल, चौकोर, भारी, सुडौल आदि।

(2) कुछ विशेषण संज्ञा में प्रत्यय लगाकर बनते हैं –

प्रत्यय  संज्ञा  विशेषण
इक इतिहास ऐतिहासिक
ईला रंग रंगीला
वान् प्रतिभा प्रतिभावान
मान् शक्ति शक्तिमान्
मान् बुद्धि बुद्धिमान

(3) दो या अधिक शब्दों के मेल से भी विशेषण बनते हैं। जैसे – चलता-फिरता, काला-कलूटा, टेढ़ा-मेढ़ा आदि।

उपसर्ग के योग से-

स + बल – सबल।
दुः + बल – दुर्बल।
ला + पता – लापता।
निः + रोग – निरोग।
ला + वारिस – लावारिस।
निः + संतान – निसंतान्

संज्ञा शब्दों से-

लखनऊ – लखनवी।
आदर – आदरणीय।
कष्ट-कष्टप्रद
पानी – पनीला
नगर – नागरिक।
नमक – नमकीन।

सर्वनाम से-

यह – ऐसा
जो – जैसा
तुम – तुमसा
वह – वैसा।

क्रिया से –

चलना – चालू
भागना – भागोड़ा
पठ – पठित
हँसना – हँसोड़
भूलना – भुलक्कड़
काँपना – कँपायमान

अव्यय से-

ऊपर – ऊपरी
आगे – अगला
नीचे – निचला
पीछे – पिछला
बाहर – बाहरी
भीतर – भीतरी
अंदर – अंदरूनी

(4) आकारांत विशेषण लिंग, वचन और कारक के अनुसार बदलकर ‘‘ या ‘‘ रूप बन जाते हैं। जैसे-

पुल्लिग  स्त्रीलिंग
एकवचन – काला, बड़ा, ऐसा, सड़ा, कड़ा काली, बड़ी, ऐसी, सड़ी, कड़ी
बहुवचन – काले, बड़े, ऐसे, सड़े, कड़े काली, बड़ी, ऐसी, सड़ी, कड़ी

(5) सार्वजनिक विशेषण भी वचन और कारक के अनुसार उसी प्रकार रूपांतरित होते हैं जिस तरह सर्वनाम। जैसे-​

एकवचन  बहुवचन
वह बालक वे बालक
वह छात्र
वे छात्र
उस लड़के का  उन लड़कों का

(6) जब संज्ञा का लोप होता है और विशेषण संज्ञा का काम करता है, तब उसका रूपांतरण विशेषण के ढंग के स्थान पर संज्ञा के ढंग से होता है। सामान्यत: विशेषण के साथ ‘परसर्ग‘ नहीं लगता, विशेष्य के साथ लगता है, किन्तु संज्ञा बन जाने पर विशेषण पद के साथ परसर्ग लगता है। जैसे-

बड़ों की बात माननी चाहिए।
छोटों से स्नेह करना चाहिये।
वीरों ने सब कुछ कर दिखाया।
उसने सुन्दरी से पूछा।
विद्वानों का आदर करना चाहिए।

पूर्ण विराम चिन्ह (।) तथा इसके प्रयोग 

अल्प विराम चिन्ह ( , ) | अल्प विराम चिन्ह के प्रयोग

संधि किसे कहते हैं, संधि के भेद

तुलनात्मक विशेषण

तुलनात्मक विशेषण – दो या दो से अधिक वस्तुओं या भावों के गुण, मान आदि के परस्पर मिलान का विशेषण ‘तुलनात्मक विशेषण’ कहलाता है। हिन्दी व्याकरण में इस विषय पर बहुत कम विचार हुआ है, क्योंकि हिन्दी में विशेषणों की तुलना अंग्रेजी के क्रम से नहीं होती।

अंग्रेजी व्याकरण में डिग्री (Degree) के विचार से तुलना की तीन दशाएँ हैं। Positive, Com- parative Superlative.

इनके शब्द रूप इस प्रकार हैं –

Positive  Comparative  Superlative
Good Better Best
Bad Worse Worst

इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि अंग्रेजी में विशेषणों की तुलना करते समय शब्दों के रूप बदल जाते हैं, परन्तु हिन्दी में परिवर्तन करते समय विशेषणों के रूप यथावत् रहते हैं। उनमें परिवर्तन नहीं होता। कुछ उदाहरण-

श्याम, मोहन से अधिक ईमानदार है।

सुनील रहीम से अधिक सुन्दर है।

राघव की साइकिल हनुमान की साइकिल से मूल्यवान है।

मिश्रा अपने वर्ग का सबसे तेज छात्र है।

इन वाक्यों में ईमानदार’ , सुन्दरमूल्यवान‘ तथा तेज ‘विशेषण’ हैं। दो व्यक्तियों की तुलना में इन शब्दों के रूप नहीं बदलते। हिन्दी में से, ‘अपेक्षा’, ‘सामने‘, ‘सबमें‘ और सबसे लगाकर विशेषणों की तुलना की जाती है। कुछ उदाहरण-

वह राम की तुलना में अच्छा है।
सुशील की अपेक्षा गणेश अधिक शिष्ट है।
यह सबसे अच्छी पुस्तक है।

संस्कृत में ‘तर‘ और ‘तम/’ प्रत्यय लगाकर भी तुलना की जाती है। संस्कृत में अंग्रेजी की भाँति ही विशेषणों का रूप परिवर्तन होता है।

यथा – सुन्दर, सुन्दरतर, सुन्दरतम, हिन्दी में भी शब्दों के इन तीन रूपों को तीन अवस्थाओं में रखा गया है :

  1. मूलावस्था
  2. उत्तरावस्था
  3. उत्तमावस्था

मूलावस्था

इनमें विशेषण सीधे प्रकट होता है। इस विशेषण में गुण या दोष की तुलना दूसरे विशेषण से नहीं की जाती।
हिन्दी की प्रकृति संस्कृत से भिन्न होने के कारण सामान्यतः ‘तर‘ के स्थान पर ‘से‘, ‘या’ में तथा तम‘ के स्थान पर ‘से‘, ‘या’ में तथा ‘तम’ के स्थान पर ‘सबसे’ और ‘सबमें’ जैसे शब्दों का अधिक प्रयोग होता है। इतना ही नहीं ‘से अधिक’, ‘से ज्यादा’, ‘से भी अधिक’, ‘से कम’, ‘से भी कम’, ‘से कुछ कम’, ‘से बढ़कर’, ‘से कहीं’, जैसे प्रत्यय पदों का भी प्रयोग होता है।जैसे-

से अधिक – श्याम मोहन से अधिक बड़ा है।
से भी अधिक – हरि राम से भी अधिक बड़ा है।
से कहीं – केशव तुमसे कहीं अच्छा है।
से बढ़कर – वह तुमसे बढ़कर है।

उत्तरावस्था

इसमें दो वस्तुओं की तुलना होती है और उनमें किसी एक वस्तु के गुण या दोष दूसरी वस्तु से अधिक बताए जाते हैं। जैसे-राजा बाबू अहमद से अधिक समझदार हैं। सुनील राघव से कहीं ज्यादा चालाक है।

उत्तमावस्था

इसमें विशेषण द्वारा किसी वस्तु को सबसे अधिक श्रेष्ठ. या निकृष्ट बताया जाता है। जैसे – राघव हमारे कॉलेज का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी है।
प्रिया कक्षा की सबसे सुन्दर छात्रा है।
सुनील कॉलोनी का सबसे नेक बच्चा है।

विशेषण की तुलना

मूलावस्था उत्तरावस्था  उत्तमावस्था 
अधिक अधिकतर अधिकतम
उत्कृष्ट उत्कृष्टतर उत्कृष्टतम
उच्च उच्चतर उच्चतम
दीर्घ दीर्घतर दीर्घतम
गुरु गुरुतर गुरुतम
निम्न निम्नतर निम्नतम
मधुर मधुरतर मधुरतम
महत् (महान्) महत्तर महत्तम
श्रेष्ठ श्रेष्ठतर श्रेष्ठतम
सुन्दर सुन्दरतर सुन्दरतम

विशेषण का पद परिचय

विशेषण के पद परिचय में संज्ञा और सर्वनाम के समान लिंग, वचन और विशेष्य बताना पड़ता है।

उदाहरण –  यह तुम्हें शिवाजी के अमूल्य गुणों की थोड़ी-बहुत जानकारी अवश्य कराएगा विशेषण हैं। इनका पद-परिचय निम्नवत है।

अमूल्य – विशेषण गुणवाचक, पुल्लिग, बहुवचन, अन्य पुरुष, संबंधवाचक गुणों इसका विशेष्य है।
थोड़ी-बहुत – विशेषण, अनिश्चित संख्या वाचक, स्त्रीलिंग, बहुवचन, कर्मवाचक, ‘जानकारी’ इसका विशेष्य होगा।

सर्वनाम | सर्वनाम की परिभाषा, उदाहरण

कारक | कारक की परिभाषा, उदाहरण

वचन किसे कहते हैं, एकवचन, बहुवचन

लिंग किसे कहते हैं, लिंग के प्रकार

संज्ञा किसे कहते हैं, संज्ञा की परिभाषा, संज्ञा के भेद

पूर्ण विराम चिन्ह (।) तथा इसके प्रयोग

विशेषण किसे कहते हैं?

संज्ञा और सर्वनाम शब्दों की विशेषता बताने वाले शब्दों को विशेषण कहते हैं। विशेषण एक ऐसा शब्द है, जो संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताता है।

विशेष्य किसे कहते हैं?

जिस शब्द की विशेषता बताई जाए, वह विशेष्य कहलाता है।

विशेषण के कितने भेद होते हैं?

गुण, संख्या और परिमाण के आधार पर विशेषण के मुख्यतः तीन भेद माने गये हैं
1.सार्वनामिक विशेषण
2.गुणवाचक विशेषण
3.संख्यावाचक विशेषण

Leave a Comment