संक्षेपण किसे कहते हैं, नियम, निर्देश | संक्षेपण की विशेषताएं

संक्षेपण की उपयोगिता पर प्रकाश डालिए, संक्षेपण की विशेषता. संक्षेपण के उदाहरण, संक्षेपण किसे कहते हैं अच्छे संक्षेपण की क्या विशेषता है. संक्षेपण के कितने भेद हैं. संक्षेपण के प्रकार, आदर्श संक्षेपण की विशेषता है। इन सभी के उत्तर इस आर्टिकल में दिए गए हैं.

संक्षेपण किसे कहते हैं

संक्षेपण वह कार्य है जिसके द्वारा हम किसी विवरण, वर्णन, व्याख्या, भाषण, पत्र या लेख को इस ढंग से प्रस्तुत करें जिसमें अप्रासंगिकता, पुनरावृत्ति आदि का त्याग तथा अनिवार्य एवं उपयोगी बातों का प्रवाहपूर्ण संक्षिप्त वर्णन शामिल हो।

इस परिभाषा के अनुसार संक्षेपण स्वयं में पूर्ण रचना है जिसके अध्ययन के पश्चात् मूलसंदर्भ के अध्ययन की कोई आवश्यकता नहीं रहती है। संक्षेपण कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक भावों एवं तथ्यों को प्रस्तुत करने की कला है।

संक्षेपण की विशेषताएँ

संक्षेपण की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) पूर्णता -‘संक्षेपण’ में आवश्यक विचार छूटना नहीं चाहिए। इसमें मूल अवतरण की बातों में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए। यह भावार्थ, सारांश, व्याख्या, आशय आदि से अपनी प्रकृति भिन्न रखता है।

(ii) संक्षिप्तता – सामान्य रूप में यह मूल का तृतीयांश (1/3) होना चाहिए। इसमें अनावश्यक वर्णन, विस्तार, विशेषण या उदाहरण नहीं होने चाहिए। उसकी सीमा का ध्यान रखना अनिवार्य है।

(iii) स्पष्टता – संक्षेपण में अर्थ को यथासंभव स्पष्ट करना चाहिए। यह ऐसा होना चाहिये कि इसे पढ़ते ही मूल अंश पूर्णतः समझ में आए।

(iv) भाषा की सरलता – संक्षेपण की भाषा सरल और स्पष्ट होनी चाहिए। किसी भी प्रकार की क्लिष्टता भावों को दुरूह तथा अस्पष्ट कर देगी।

(v) शुद्धता – भाव और भाषा की शुद्धता-संक्षेपण में ऐसे विषय या भाव लिए जाएँ जो मूल संदर्भ में हों।

(vi) प्रवाह और क्रमबद्धता – संक्षेपण में भाषा और भावों का प्रवाह आवश्यक है। इसके भाव क्रम से हों तथा भाषा प्रवाहपूर्ण होनी चाहिए।

संक्षेपण के नियम

संक्षेपण के सामान्य नियम निम्नलिखित हैं-

(i) मूल संदर्भ को ध्यान से पढ़कर ही संक्षेपण लिखने का विचार करें।
(ii) मूल का भावार्थ समझने पर आवश्यक शब्द, वाक्य और वाक्यांशों को रेखां
(iii) यह मूल संदर्भ का संक्षिप्त रूप है।
(iv) रूप रेखा को अंतिम रूप देने से पूर्व उसे पुनः सावधानी से पढ़ना चाहिए जिससे कोई भी आवश्यक अंश छूट नहीं जाये।
(v) किसी अवतरण को संक्षिप्त करते समय व्याकरण के नियमों की अनदेखी नहीं होना चाहिये।
(vi) अंत में भाव एवं विचारों के अनुकूल संक्षेपण का उचित शीर्षक अवश्य देना चाहिए।

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शैलीगत नियम

(1) संक्षेपण में विशेषण और क्रिया विशेषणों को कोई स्थान नहीं है। शैली अलंकृत नहीं होनी चाहिए। उसमें आडंबर भी नहीं होना चाहिए।

(ii) अर्थ व्यंजना में सहायक शब्दों का प्रयोग होना चाहिए। मूल के स्थान पर उसी अर्थ के नए शब्दों का प्रयोग उचित है। इससे अर्थ में उलटफेर की संभावना समाप्त हो जाती है।

(iii) संक्षेपण में मूल अवतरण के वाक्यांशों के लिए एक शब्द का प्रयोग किया जा सकता है। इससे मूल के भावोत्कर्ष में सहायता मिलना संभव है। जैसे-

(1) ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास रखने वाला – आस्तिक

(ii) जो ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास न रखता हो – नास्तिक

(iii) जो कार्य के बदले वेतन न ले – अवैतनिक 

(iv) 15 दिन का समय – पक्ष

(v) आमदनी और खर्च का विवरण – बजट

मुहावरों के प्रयोग की दशा में उनके अर्थ का उल्लेख किया जा सकता है।

(iv) भाषा-शैली सरल तथा स्पष्ट होनी चाहिए।

(v) संक्षेपण में भाषा-शैली व्याकरण के नियमों द्वारा नियंत्रित होनी चाहिए।

(vi) संक्षेपण में परोक्ष कथन सदैव अन्य पुरुष में होना चाहिए।

(vii) संक्षेपण में लम्बे वाक्य या वाक्य खण्डों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

(viii) शब्दों के प्रयोग में संयम से कार्य लेना चाहिए। व्यर्थ और बेजान शब्दों का प्रयोग । नहीं होना चाहिए।

(ix) इसकी भाषा-शैली में साहित्यिक चमत्कार और काव्यात्मक सुन्दरता के प्रयत्न की आवश्यकता नहीं।

(x) संक्षेपण में समानार्थी शब्दों को हटाकर पुनरुक्ति दोष से बचना चाहिए।

कुछ आवश्यक निर्देश

(i) संक्षेपण में मूल संदर्भ के उदाहरण, दृष्टांत तथा तुलनात्मक विचारों का समावेश नहीं होना चाहिए।
(ii) साधारणतया इसे भूतकाल तथा परोक्ष कथन में लिखा जाना चाहिए।
(iii) संक्षेपण में अन्य पुरुष का प्रयोग होना चाहिए।
(iv) भाषा सरल तथा स्पष्ट होनी चाहिए।
(v) अनावश्यक तथा असम्बंद बातें हटा देनी चाहिए.
(vii) आरम्भ का वाक्य विषय को स्पष्ट करने वाला होना चाहिए.

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