स्वप्रेरण क्या है, स्वप्रेरण गुणांक की विमा, उदाहरण, मात्रक, सूत्र

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स्वप्रेरण क्या है

जब किसी कुण्डली में वैद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो उसके चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। धारा के मान में परिवर्तन करने पर कुण्डली से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है। अतः जब कुण्डली की धारा में परिवर्तन किया जाता है, तो कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है, जिसके कारण कुण्डली में मुख्य धारा के अतिरिक्त एक प्रेरित धारा भी प्रवाहित होती है। विद्युतचुम्बकीय प्रेरण की इस घटना को जिसमें किसी कुण्डली में प्रवाहित धारा को परिवर्तित करने से स्वयं उसी कुण्डली में प्रेरित धारा उत्पन्न होती है, ‘स्व-प्रेरण‘ कहते हैं। स्वप्रेरण गुणांक की विमा [ M L2 T-2 A-2 ] होता है.

स्वप्रेरण क्या है

लेन्ज के नियमानुसार, प्रेरित धारा सदैव मुख्य धारा में होने वाले परिवर्तन का विरोध करती है। जब मुख्य धारा बढ़ायी जाती है (धारा-नियन्त्रक के द्वारा) तो प्रेरित धारा, मुख्य धारा के विपरीत दिशा में बहती है तथा इस प्रकार मुख्य धारा के बढ़ने का विरोध करती है (चित्र 8 a)। जब मुख्य धारा घटायी जाती है, तो प्रेरित धारा, मुख्य धारा की ही दिशा में बहती है और मुख्य धारा के घटने का विरोध करती है (चित्र 8 b)। चोक कुण्डली इसी सिद्धान्त पर आधारित है।

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स्वप्रेरण गुणांक क्या है

माना कि किसी कुण्डली में वैद्युत धारा । प्रवाहित हो रही है तथा धारा के कारण, कुण्डली के प्रत्येक फेरे से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स का है। यदि कुण्डली में तार के N फेरे हैं, तो कुण्डली में फ्लक्स-ग्रन्थिताओं (flux-linkages) की संख्या N कर होगी। यह संख्या कुण्डली में प्रवाहित धारा i के अनुक्रमानुपाती होती है. अर्थात्

N ΦB   ∝   i

OR

N ΦB  = L i

जहाँ L एक नियतांक है जिसे कुण्डली का ‘स्व-प्रेरण गुणांक‘ अथवा ‘स्व-प्रेरकत्व‘ कहते हैं। उपरोक्त समीकरण से

L  =  N ΦB / i

स्व-प्रेरण गुणांक का SI मात्रक हेनरी‘ (henry) है। यदि किसी कुण्डली में 1 ऐम्पियर / सेकण्ड की दर से धारा के परिवर्तित होने पर उसमें
1 वोल्ट का प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो, तो कुण्डली का स्व-प्रेरण गुणांक 1 हेनरी होता है।

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