तरंगाग्र किसे कहते हैं, तरंगाग्र की परिभाषा | trangagra ki paribhasha

तरंगाग्र किसे कहते हैं

तरंगाग्र : यदि हम माध्यम में कोई ऐसा पृष्ठ (surface) खींचें कि जिसमें स्थित सभी कण कम्पन की समान कला में हों, तो ऐसे पृष्ठ को ‘तरंगाग्र‘ कहते हैं। समांग माध्यम में किसी तरंग का तरंगाग्र तरंग के संचरण की दिशा के लम्बवत् होता है। अत: तरंगाग्र के अभिलम्बवत् खींची गई रेखा, तरंग के संचरण की दिशा को प्रदर्शित करती है तथा इसे ‘किरण‘ (ray) कहते हैं।

तरंगाग्र विभिन्न आकृतियों के हो सकते हैं। यदि तरंग माध्यम में एक अकेली दिशा में संचरित हो रही है तब किसी भी क्षण इस दिशा के लम्बवत् खींचे गये पृष्ठ पर स्थित माध्यम के कण समान कला में कम्पन कर रहे होंगे। अत: इस दशा में तरंगाग्र ‘समतल‘ (plane) होगा तथा किरणें समान्तर ऋजुरेखीय होंगी.

गोलिय तथा बेलनाकार तरंगाग्र

यदि माध्यम में तरंगें एक बिन्दु-स्रोत (point-source) से उत्पन्न हो रही हैं तब वे सभी दिशाओं में संचरित होती हैं। यदि हम बिन्दु-स्रोत को केन्द्र मानकर उसके चारों ओर एक गोलीय पृष्ठ खींचें तो उस पर स्थित माध्यम के कण समान कला में कम्पन कर रहे होंगे। इसका कारण यह है कि स्रोत से चलने वाला विक्षोभ इन सभी कणों पर एक साथ पहुंचेगा। अत: इस दशा में तरंगाग्र ‘गोलीय‘ (spherical) होगा तथा किरणें त्रिज्य-रेखाएँ (radial lines) होंगी। यदि तरंग-स्रोत रेखीय (linear) है तब तरंगाग्र बेलनाकार होगा.

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