भाषा की परिभाषा | बोली किसे कहते हैं

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भाषा

मानव, ईश्वर की सृष्टि का एक सर्वश्रेष्ठ एवं बुद्धिमान प्राणी है। सभ्यता के आदिकाल से, अनेक कारणों से उसने समाज का निर्माण किया। पारस्परिक सम्पर्क के लिए उसे भाषा की आवश्यकता पड़ी क्योंकि विचारों की अभिव्यक्ति एक सर्वग्राह्य भाषा के अभाव में असंभव थी। इस प्रकार मानव के विकास के साथ ही भाषा का जन्म हुआ।

सामान्य अर्थ – भाषा वह माध्यम है जिसके द्वारा हम एक-दूसरे के विचारों को समझकर पारस्परिक संपर्क को निकटता में बदलते हैं।

“पूर्व निश्चित ध्वनि एवं उच्चारित संकेतों का वह समूह जो मानव के पारस्परिक संपर्क को गहन बनाकर विचारों की अभिव्यक्ति में सहायता करता है, उसे भाषा कहते हैं।

अत: हम कह सकते हैं कि भाषा –

  1. संकेतों का समूह है
  2. वह इच्छा पर आधारित है
  3. सीमित रूप में रूढ़ है

अतः भाषा केवल सार्थक समूहों या ध्वनियों का ही वह समूह है जो हमारे भावों को व्यक्त करने में सहायता करता है। निरर्थक ध्वनियों का कोई अर्थ या महत्व नहीं है। उदाहरण के लिए ‘शेर’, ‘पत्थर, ‘मारो’, ‘आया’ ये ध्वनियाँ या संकेत के रूप में होने से भाव व्यक्त करने में सक्षम नहीं है। अत: इसे हम भाषा नहीं मान सकते।

भाषा इच्छा पर आधारित है। इसमें वर्ण या शब्दों का कोई पारस्परिक सम्बन्ध नहीं है। जैसे-बन्दर, कोयल, पत्थर और कोयल इनमें आपस में कहीं कोई सम्बन्ध नहीं है। ये केवल संबोधन हैं। इन्हें नाम कह सकते हैं। सामान्य होने पर भी विशेष परिस्थितियों में समय तथा जन-सामान्य एवं समाज की प्रकृति इन ध्वनियों तथा संकेतों को रूढ़ और जटिल बना देते हैं।

भाषा की परिभाषा

हिन्दी भाषा के कुछ प्रसिद्ध व्याकरणविदों ने भाषा को निम्नलिखित शब्दों में परिभाषित किया है-

“मनुष्य और मनुष्यों के बीच वस्तुओं के विषय में अपनी इच्छा का आदान-प्रदान करने के लिए व्यक्त किये जाने वाले ध्वनि-संकेतों का जो व्यवहार होता है, उसे भाषा कहते हैं। (डा. श्याम सुन्दर दास  )

“जिन ध्वनि-चिह्नों द्वारा मानव परस्पर विचार-विनिमय करता है, उसको समष्टि रूप से भाषा कहते हैं। (डा, बाबूराम सक्सेना )

भाषा मनुष्यों की उस चेष्टा या गतिविधि को कहते हैं जिससे मनुष्य अपने उच्चारणोपयोगी शरीरावयवों से उच्चारण किए गए वर्णनात्मक या व्यक्त शब्दों द्वारा अपने विचारों को प्रकट करते हैं। (डा. मंगलदेव शास्त्री )

भाषा ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था होती है, अर्थात् भाषा में विभिन्न ध्वनियां मिलकर अर्थवान शब्द बनाती हैं। इन अर्थवान शब्दों के मेल से ही मानव दूसरे के भावों को समझता है तथा अपने भाव दूसरों तक पहुँचाता है। (डा. रवि प्रकाश गुप्त )

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम निम्नवत् विचार प्रकट कर सकते हैं-

  • भाषा में निश्चित ध्वनि का प्रयोग परम्पराओं के अनुसार होता है जो साधारणतया बाद में रूढ़ हो जाती है।
  • मन के विचारों को, एक मानव के रूप में व्यक्त करने के लिये हम उन्हीं संकेतों का प्रयोग करते हैं जिन्हें समाज की मान्यता प्राप्त है।
  • ये ध्वनि संकेत प्रत्येक समाज के अपने मानकानुसार निश्चित हैं।

भाषा का स्वभाव

भाषा का स्वभाव एक कल-कल निनाद करती सरिता के समान सतत् प्रवाहमान है। भाषा के गुण या स्वभाव को उसकी प्रकृति कहते हैं। हर भाषा की अपनी एक प्रकृति तथा उसके आंतरिक गुण या अवगुण होते हैं। भाषा एक ऐसी सामाजिक शक्ति होती है जो केवल मानव को ही प्राप्त होती है।

भाषा रूपी हथियार होने से ही मानव पृथ्वी पर अन्य जीवों से श्रेष्ठ माना जाता है। यहाँ तक कि तोता भी केवल कुछ शब्द रटने तथा उनको दोहरा लेने की क्षमता के कारण ही पक्षियों में सर्वश्रेष्ठ हो जाता है। मानव उसे अपने पूर्वजों से प्राप्त कर विकास करता है। अतः भाषा परम्परागत एवं अर्जित दोनों ही है।

एक शक्तिशाली भाषा, सरिता के समान निरन्तर प्रवाहमान रहती है। भाषा के कथित और लिखित दो रूप हैं। हम इसका प्रयोग कथन के रूप में (बोलकर) तथा लिखकर दोनों रूप में करते हैं। देश और काल के अनुसार भाषा के रूप में परिवर्तन होता रहा है। यही कारण है कि संसार में अनेक भाषाएँ प्रचलित हैं।

भाषा का निर्माण वाक्यों से हुआ है। वाक्य शब्दों से तथा शब्द ध्वनियों से बने हैं। इस प्रकार वाक्य शब्द और मूल ध्वनियों के अभिन्न अंग हैं। व्याकरण में इन्हीं अंग प्रत्यंगों का अध्ययन एवं विवेचन होता है। अत: व्याकरण भाषा पर ही आश्रित हैं।

भाषा के रूप

हर देश में भाषा के विविध रूप मिलते हैं-(i) बोलियाँ, (ii) व्याकरण सम्मत या साहित्यिक भाषा।

बोली किसे कहते हैं

बोलियाँ-जिन स्थानीय बोलियों का प्रयोग मानव अपने समूह या घरों में करता है, उसे बोली कहते हैं। भारत में प्रचलित ऐसी बोलियों की संख्या सैकड़ों में हैं। इन बोलियों का जन्म वनों में घास-पतवार के समान होता है। इनका क्षेत्र सीमित होता है। जैसे- भोजपुरी, मगही, बृजभाषा तथा अवधी राजस्थानी हरियाणवी आदि।

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व्याकरण सम्मत भाषा

यह भाषा व्याकरण पर आधारित होती है तथा व्याकरण द्वारा ही नियंत्रित होती है। इसका प्रयोग शिक्षा, शासन और साहित्य में होता है। जब कोई भाषा, व्याकरण द्वारा परिष्कृत की जाती है तब उस भाषा को शुद्ध भाषा कहते हैं। उदाहरण के लिए खड़ी बोली, कभी एक स्थानीय बोली थी जो वर्तमान में व्याकरण सम्मत एवं संस्कारित होने के बाद एवं परिनिष्ठित होकर साहित्यिक भाषा बन गई है।
इस साहित्यिक भाषा का आज प्रयोग भारत के बड़े भू-भाग में होता है। वर्तमान में भारत में 15 (१५) विकसित भाषाओं में से सरकार और संविधान ने हिन्दी (खड़ी बोली) को ही राजभाषा एवं राष्ट्रभाषा का सम्मान दिया है। इस प्रकार प्रत्येक देश की अपनी विकसित राष्ट्रभाषा है। जिसमें उन देशों के प्रशासनिक तथा शासनिक कार्य चलते हैं। जैसे इटली देश में इटैलियन, चीन में चीनी, सऊदी अरब में अरबी तथा भारत में हिन्दी।

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