श्री गणेश जी की आरती हिन्दी में
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा.
पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा.
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा.
सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेव
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा.
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी
कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा.
आरती क्या है
आरती पूजा के अन्त में की जाती है। किसी भी देवी-देवता की षोडशोपचार पूजा के बाद उसकी आरती उतारना बहुत आवश्यक है क्योंकि बिना आरती के पूजा अधूरी मानी जाती है तथा पूजा में अज्ञानतावश कोई कमी रह जाती है तो आरती करने से उसकी पूर्ति हो जाती है।
स्कन्द पुराण में कहा गया है-
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् कृत पूजन हरेः ।
सर्व सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे ॥
अर्थात् पूजन मन्त्रहीन और क्रियाहान होने पर भी नीराजन (आरती) कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है।
गणेश जी की आरती कैसे करनी चाहिये
साधारणतः पांच बत्तियों से आरती की जाती है जिसे “पच्चप्रदीप” कहते हैं। कपूर से भी आरती होती है। कुंकुम, अगर, कपूर, घृत और चन्दन की सात या पांच बत्तिया बनाकर अथवा दिये में (रूई और घी की) बत्तियां बनाकर शंख, घण्टा आदि बजाते हुए आरती करनी चाहिये । आरती उतारते समय सर्वप्रथम भगवान की प्रतिभा के चरणों में चार बार, दो बार नाभिमण्डल, एक बार मुखमण्डल और सात बार समस्त अंगों पर घुमायें। आरती इस प्रकार घुमायें कि आरती के दांये ओर प्रतिमा रहे.