हिन्दी भाषा का महत्व, हिन्दी की विशेषताएँ | Hindi bhasha ka mahatva

हिन्दी भाषा का महत्व

संसार में 13 भाषाएँ बोलने वाले लोगों की संख्या लगभग 60 करोड़ है। विश्व की भाषाओं में हिन्दी भाषा का तीसरा स्थान तथा बोलने वालों की संख्या लगभग 30 करोड़ है। भारत के अलावा म्याँमार, श्रीलंका, सूरीनाम, फिजी, ऐसे देश हैं जहाँ हिन्दी भाषी लोगों की संख्या काफी है। (हिन्दी भाषा का महत्व)

हिन्दी हमारे देश में युगों से विचार विनिमय का साधन रही है। यह केवल उत्तर भारत की ही भाषा नहीं है, अपितु दक्षिण भारत के प्राचीन आचार्यों जैसे श्री बल्लभाचार्य विट्ठल, रामानुज तथा रामानन्द आदि ने इसी भाषा के माध्यम से अपने सिद्धान्तों का प्रचार किया। अहिन्दी भाषी राज्यों के सन्त कवियों ने भी इसी भाषा को अपनाया।

(Hindi bhasha ka mahatva) पं. बंगाल के चैतन्य महाप्रभु, महाराष्ट्र के नामदेव, असोम के शंकरदेव उन अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के हिन्दी भाषी सन्तों में से प्रमुख हैं। आज हिन्दी सम्पूर्ण भारत में किसी न किसी रूप में प्रचलित है। हिन्दी एक जीवित और सशक्त भाषा है। इसने अनेक देशी और विदेशी शब्दों को अपनाया है। अपनी असीमित पाचन शक्ति के कारण हिन्दी ने अनेक भाषाओं की ध्वनियों, शब्दों, मुहावरों और कहावतों को आत्मसात कर लिया है।

इस प्रकार हिन्दी को अगर विभिन्न भाषाओं का मिश्रण कहा जाये तो गलत नहीं होगा तथा इसकी यह उदारता ही हिन्दी की प्रसिद्धि तथा जनसाधारण में इसकी लोकप्रियता का कारण है। इस प्रकार हिन्दी ने अपने शब्द भण्डार तथा अभिव्यक्ति को बढ़ाया है। सरल और जनभाषा होने के कारण हिन्दी का प्रचार-प्रसार देश में तीव्र गति से बढ़ा है। हिन्दी भाषा का महत्व.

भाषा की परिभाषा

हास्य रस का उदाहरण

हिन्दी की विशेषताएँ

हिन्दी की विशेषता : दूसरी भारतीय भाषाओं के समान हिन्दी भी संस्कृत पर आधारित है। संस्कृत ही वह गंगोत्री है जहाँ से हिन्दी का उद्गम हुआ तथा बाद में वह विकसित होकर गंगा जैसी विस्तृत तथा वेगवती हो गयी। अपनी प्रकृति होने पर हिन्दी ने संस्कृत का अंधानुकरण नहीं किया। इसने संस्कृत वर्णमाला, उच्चारण तथा ध्वनियों को ग्रहण किया है।

संस्कृत का सम्पूर्ण वाङ्मय देवनागरी में होने के कारण हिन्दी में भी उसी लिपि को अपनाया गया है। इसमें ध्वनि प्रतीकों (स्वर और व्यंजन) का क्रम वैज्ञानिक है। हृस्व और दीर्घ स्वरों के लिए अलग-अलग निश्चित मात्राएँ हैं। हिन्दी की विशेषताएँ.

अल्प प्राण और महाप्राण ध्वनियों के लिए अलग-अलग लिपि चिह्न हैं। जैसे-‘क’ अल्पप्राण तथा ‘ख’ महाप्राण ध्वनि। हिन्दी, गतियुक्त तथा व्यावहारिक लिपि है। शेष वर्गों के लिए क, ख, ज, फ, भैं, एँ इत्यादि। बाद में चिह्न बना लिए गए। ‘क्ष’ ‘त्र’ और ‘ज्ञ’ (संयुक्त व्यंजन) के अतिरिक्त व्यंजन भी बनाए गए (ड़, ढ़)। इसमें वर्गों के नाम के अनुसार उच्चारण होता है। प्रकृति के अनुसार ही उसका उच्चारण होता है हिन्दी में एक ध्वनि एक चिह्न है। देवनागरी में उच्चरित ध्वनियों का ही प्रयोग होता है।

हिन्दी भाषा का इतिहास

बोली किसे कहते हैं

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