Transformer In Hindi | ट्रांसफॉर्मर क्या होता है, ट्रांसफॉर्मर की रचना, कार्यविधि, उपयोग

ट्रांसफॉर्मर क्या होता है

Transformer In Hindi : ट्रांसफॉर्मर अन्योन्य प्रेरण (mutual induction) के सिद्धान्त पर कार्य करने वाला एक ऐसा साधन है जो प्रत्यावर्ती धारा के विभव को परिवर्तित करने के काम आता है। यह ऊँचे विभव वाली निर्बल प्रत्यावर्ती धारा को नीचे विभव वाली प्रबल वैद्युत धारा में, अथवा नीचे विभव वाली प्रबल प्रत्यावर्ती धारा को ऊँचे विभव वाली निर्बल वैद्युत धारा में बदलने के काम आता है।

ट्रांसफॉर्मर कितने प्रकार के होते हैं

ट्रांसफॉर्मर दो प्रकार के होते हैं :

  1. अपचायी ट्रांसफॉर्मर’ (step-down transformer)
  2. उच्चायी ट्रांसफॉर्मर’ (step-up transformer)

ट्रांसफॉर्मर केवल प्रत्यावर्ती धारा (AC) के साथ ही काम में आता है, दिष्ट धारा (DC) के साथ नहीं।

ट्रांसफॉर्मर की रचना

इसमें नर्म लोहे की पत्तियों को एक के ऊपर एक रखकर बनाया गया एक आयताकार अथवा गोलाकार पटलित क्रोड (laminated core) होता है। ये पत्तियाँ एक -दूसरे से पृथक्कृत रखी जाती हैं जिससे कि क्रोड में भँवर-धाराएँ कम उत्पन्न हों और वैद्युत ऊर्जा का ह्रास कम हो। इस क्रोड पर ताँबे के तार की अलग-अलग दो कुण्डलियाँ लपेटी जाती हैं। ये कुण्डलियाँ एक-दूसरे से तथा लोहे की क्रोड से पृथक्कृत रखी जाती हैं।इन कुण्डलियों में से एक में ताँबे के मोटे तार के कम फेरे होते हैं तथा दूसरी में ताँबे के पतले तार के अधिक फेरे होते हैं। इनमें से एक को ‘प्राथमिक कुण्डली’ (primary coil) तथा दूसरी को ‘द्वितीयक कुण्डली’ (secondary coil) कहते हैं। उच्चायी ट्रांसफॉर्मर में मोटे तार की कम फेरों वाली कुण्डली प्राथमिक होती है तथा पतले तार की अधिक फेरों वाली कुण्डली द्वितीयक होती है। अपचायी ट्रांसफॉर्मर में इसके विपरीत होता है

ट्रांसफॉर्मर की कार्यविधि

दिये गये विद्युत वाहक बल के स्रोत को सदैव प्राथमिक कुण्डली में जोड़ते हैं। जब प्राथमिक कुण्डली में प्रत्यावर्ती वैद्युत धारा बहती है, तो धारा के प्रत्येक चक्र में क्रोड एक बार एक दिशा में चुम्बकित होती है तथा दूसरी बार दूसरी दिशा में। अत: क्रोड में एक ‘परिवर्ती’ चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। (इस प्रकार प्राथमिक कुण्डली की वैद्युत ऊर्जा का क्रोड की चुम्बकीय ऊर्जा में रूपान्तरण हो जाता है।)चूँकि द्वितीयक कुण्डली भी उसी क्रोड पर लिपटी है, अत: क्रोड के बार-बार चुम्बकन तथा विचुम्बकन होने से इस कुण्डली में को गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में लगातार परिवर्तन होता रहता है। अत: विद्युत-चुम्बकीय प्रेरण के कारण द्वितीयक कुण्डली में उसी आवृत्ति का प्रत्यावर्ती विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार क्रोड की चुम्बकीय ऊर्जा का द्वितीयक कुण्डली की वैद्युत ऊर्जा में रूपान्तरण हो जाता है)।

द्वितीयक कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहक बल का मान दोनों कुण्डलियों में फेरों की संख्या के अनुपात पर निर्भर करता है। माना कि प्राथमिक कुण्डली में तार के फेरों की संख्या Np, तथा द्वितीयक कुण्डली में Ns, है और प्रत्येक फेरे से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स ΦB है। यह मानने पर कि चुम्बकीय फ्लक्स का कोई क्षरण (leakage) नहीं होता, प्राथमिक तथा द्वितीयक के प्रत्येक फेरे से बद्ध फ्लक्स समान होगा।​

ट्रांसफार्मर के उपयोग

ट्रांसफार्मर का पहला सबसे महत्वपूर्ण उपयोग बिजली घरों में विद्युत ऊर्जा को शहरों व घरों तक आवश्यकतानुसार करके पहुंचाना है। प्रायः घरों में 220 वोल्ट की विद्युत ऊर्जा आती है बिजली घरों में विद्युत ऊर्जा 220 वोल्ट से बहुत ऊंची आती है। अतः ट्रांसफार्मर से बिजली को गुजार कर 220 वोल्ट कर दिया जाता है।

फ्लेमिंग राइट हैंड रूल | Fleming Right Hand Rule 

कार्यफलन किसे कहते हैं

घन कोण किसे कहते हैं, घन कोण का मात्रक और सूत्र

प्रकाश का अपवर्तन किसे कहते हैं 

Leave a Comment